Saturday, November 6, 2010

ये व्यापार नगरी, मेरे भाई

ये व्यापार नगरी, मेरे भाई
ये व्यापारनगरी
कोई ख्वाब बेचता
कोई कीमती राज बेचता

रह-रहकर मन में सवाल उठ रहा
क्या कोई यहाँ गरीबी का
भूखमरी का इलाज बेचता
उसका जवाब बेचता

हाड बेचता, मांस बेचता
जिस्मफरोशी का सामन बेचता
जवानी में बुढ़ापे के औजार बेचता
तो कोई यहाँ
बचपन को बुढ़ापे के दाम बेचता
भरे बाजार बेचता

हथियार बेचता,
खून बहाने के तमाम
साजो-सामान बेचता
खुलेआम बेचता
सरेबाजार बेचता

शायद कोई नहीं बचा यहाँ
जो अहसास की सौगात बेचता
भावनाओं की बयार बेचता

हर कोई यहाँ अपना
ईमान बेचता,
स्वाभिमान बेचता
हर बार नहीं,
तो कभी-कबार बेचता