Monday, February 11, 2013

सोशल मीडिया पर छाया प्यार का खुमार


 सोशल मीडिया साइट्स  पर वेलेंटाइन वीक का खुमार छाया हुआ है। फेसबुक और दर्जन भर अन्य सोशल नेटवर्किंग साइट पर लोग चाकलेट डे, टेडी डे, पर्पोज डे, प्रोमिस डे, किस डे और न जाने कौन-कौन से डे मनाने में लगे हैं। सोशल मीडिया साइट्स वेलेंटाइन वीक के संदेशों से अटी पड़ी हैं। अब यह सिलसिला वेलेंटाइन डे तक लगातार जारी रहेगा।
फेसबुक, आरकुट, ट्वीटर, क्युजोन, माइस्पेस, गूगल प्लस और इबिबो की सोशल नेटवर्किंग साइट पर लोग न जाने कौन-कौन से वादे कितने ही लोगों से किये जा रहे हैं। वेलेंटाइन वीक में ने केवल दूर-दराज के अपने दोस्तों, परिचितों और सगे संबंधियों का संदेश भेजे जा रहे हैं, बल्कि इस वर्चुअल दुनिया में अनजाने लोगों को भी जनकत प्यार बरसाया जा रहा है। 

सोशल मीडिया पर संदेशों के चलते वेलेंटाइन वीक की कई गुणा हो गई है। चूँकि सोशल मीडिया पर शेयर किए हुए संदेश और फोटो लाइक का बटन दबाते ही केवल आपके दोस्तों, सगे संबंधियों तक ही सीमित नहीं रहते, बल्कि ये संदेश और फोटो आपके दोस्तों के दोस्तों तक भी पहुंच जाते हैं। इसके बाद शुरू होता है टिप्पणियों का सिलसिला। अपनी पसंद की टिप्पणियों से तो किसी को गुरेज नहीं, लेकिन कुछ लम्पट किस्म के लोग सभी पर वाहियात टिप्पणियां करने से भी बाज नहीं आते। इनसे निपटाना कुछ लोगों के लिए वाकई मुश्किल हो जाता है। जो गाहे- बगाहे जानबूझकर द्विअर्थी टिप्पणियां करके आपकी इमेज की धज्जियाँ उड़ाते रहते हैं। सोशल मीडिया जहां सेलिब्रेशन को कई गुणा  बढाता है, वहीं आपके लिए समस्याएं भी पैदा करता है। आपको कुछ कारस्तानियों से भी निपटाना पड़ता है।
प्यार और दोस्ती का यह खुमार सोशल मीडिया पर केवल संदेश और मैसेजिज तक सीमित नहीं है, बल्कि इनकी सेलिब्रेशन, पार्टिज और इससे जुडी वीडियों को भी अपलोड कर शेयर किया जा रहा है। ऐसा भी नहीं है कि सोशल मीडिया पर केवल युवा पीढ़ी ही वेलेंटाइन वीक मनाने में लगी हो। अधेड़  उम्र के लोग भी वेलेंटाइन वीक मनाने में जुटे हुए हैं और उम्रदराज बुजुर्ग की भी अच्छी खासी तादाद है। कुछ लोग बुढ़ापे में ही गुल खिल रहे हैं।

सोशल मीडिया आपके लिए एक ऐसा प्लेटफार्म हो सकता है, जहां से आप अपने परिचित और सगे-संबंधियों को वेलेंटाइन के संदेश भेज रहे हैं। इसका एक आर्थिक पहलू भी है। सोशल मीडिया ग्राहकों को लुभाने वाला बाजार भी है।  सोशल नेटवर्किंग साइट्स विज्ञापनों और उपहारों के लिजाज से एक बड़ा बाजार बन चुका हैं। यहां वेलेंटाइन उपहारों के विज्ञापन भी भरमार है। सोशल नेटवर्किंग साइट पर दिए लिंक से मिंत्रा, जबोंग, कोव्स, बेस्टाइल, नापतोल बाजार, येबी, स्नेपडील, होमशॉप और फ्यूचर बाजार और इसी दर्जन भर अन्य ऑनलाइन शॉपिंग साइट्स के जरिए युवा जमकर अपने दोस्तों के लिए जमकर शॉपिंग कर रहे हैं। 

 

Friday, February 8, 2013

तबियत से ...:

नारी अस्मिता पर हमला  

नारी अस्मिता पर हमला करता संगीत और बॉलीवूड




अचानक से हमारे तथाकथित बुद्धिजीवी तबके ने हनी सिंह के अश्लील और फूहड़ संगीत को प्राइम टाइम की बहस का एजेंडा बना लिया। खबरफरोशों ने भी इसे हाथोंहाथ लिया। बैठे-बिठाये उनको एक नया एजेंडा जो मिल गया। हनी सिंह के संगीत की बहस में जो मुद्दा पीछे छूट गया वह था वास्तविक मुद्दा भड़काऊ भाषण की पहचान करने और उसपर कानूनी नकेल कसने का।



दअसल हमारा समाज नारी को पूर्ण नागरिक के तौर पर देखता ही नहीं। संगीत पर हुए इस हमले में अनुराग कश्यप प्रतीक कांजीलाल हनी सिंह के बचाव में सामने आये। हालांकि दोनों ने माना कि हनी सिंह का संगीत महिलाओं पर सीधे हमला  हैकांजीवाल ने हनी सिंह के चुनिंदा गानों को महिलाओं के प्रति थोड़ा सा उत्तेजक कहा। मजे की बात यह है अनुराग और कांजीवाल के गानों को उनका मानते हैं, लेकिन खुद हनी सिंह ने इसे सिरे से खारिज कर दिया।

विरोध केवल उनके चुनिंदा गानों को लेकर नहीं होना चाहिए, बल्कि उनके ज्यादातर गानों ने महिलाओं की छवि बिगाड़ने का काम किया है। उनके गानों में महिलाओं को वेश्या के तौर पर चित्रित किया गया। हनी सिंह के ’’यार भतेरे’’ गाने की वीडियों में हनी सिंह और गीतकार अल्फाज महिलाओं के खिलाफ उग्र भाषण का नमूना हैं। अगर इस दृश्य में महिलाओं को किसी धार्मिक समुदाय के सदस्यों साथ बदल दिया जाए, तो इस संगीत को बगैर किसी सवाल के समुदाय के खिलाफ उत्तेजित और भड़काऊ संगीत मान लिया जाता।

इस तरह का संगीत ही महिलाओं के खिलाफ हिंसा को बढ़ावा देने का काम करता है। तेजाबी हमलों की पीड़ितों महिआओं के ज्यादातर केस में उन्होंने बताया है कि पुरुष तिरस्कार और घृणा की भावना के ग्रस्त होकर महिलाओं के खिलाफ हिंसा, तेजाबी हमला और दिल्ली गैंगरैप जैसे दुष्कमों को अंजाम देते हैं।

अकेले हनी सिंह को कटघरे में खड़ा करना ठीक नहीं बॉलीवूड की बनने वाली डेली-बेली और गेंगस और वासेपूर जैसी फिल्में महिलाओं के खिलाफ हिंसा फैलाने के लिए कम जिम्मेदार नहीं है। सेंसर बोर्ड को चाहिए कि इस तरह के संगीत और फिल्मों को महज अश्लीलता  और फूहड़ता के पैमाने पर तोलने की बजाय घृणा, नफरत और उत्तेजना पैदा करने वाले भड़काऊ भाषण के पैमाने पर भी तोले।

भारतीय दंड संहिता की धारा
vzx -° सीधे तौर पर घृणा, नफरत और उत्तेजना पैदा करने वाले भड़काऊ भाषण को अपराध मानती है। यह धर्म, भाषा, क्षेत्रीय समूहों, जातियों और समुदायों के खिलाफ क्यों हो? नारी समुदाय के खिलाफ भी यह उतना ही गंभीर अपराध है।

धारा vzx- -बी सीधे किसी भी नागरिक या खास वर्ग के की गई टीका-टिप्पणी को संबोधित करती है। दुर्भाग्य की बात यह है कि यहां पर लिंग स्पष्ट रूप से अनुपस्थित है।

भड़काऊ भाषण का कानून नागरिकता को प्रभावित करने वाले इन सभी वर्गों में से लिंग की पहचान नहीं करता। इसका आशय यह है कि महिलाएं पूर्ण नागरिक नहीं हैं? उनके दिमाक में  भय पैदा करने वालों का सजा नहीं दी जाती? क्या यही अपने देश में बिना किसी भय के जीने का अधिकार है? इस अधिकार की अनुपस्थिति में कश्यप और कांजीलाल की व्याख्या, हनी सिंह के संगीत को सुनने से इंकार या जो इस संगीत को सुनते हैं उनकी आलोचना करना, आए दिन महिलाओं को जिस हिंसा का सामना करती है उसका मजाक उड़ाना है।

हनी सिंह की इस वीडियों को देख रही महिलाओं के लिए संदेश एकदम साफ है। जिस भी आदमी को हम खारिज करेंगी, वे हमारे घरों के बाहर हमें शर्मसार करेंगे, संगीत के साथ नहीं बल्कि तेजाब के साथ।