Sunday, December 19, 2010

पत्रकारिता और टेक्नोलोजी की कदमताल...........



            पत्रकारिता और टेक्नोलोजी की कदमताल
मानव सभ्यता को विकसित और समृद्ध बनाने में तकनीक के योगदान को पूरी तरह से मापा जाना संभव नहीं है लेकिन कहना न होगा कि मानव सभ्यता-संस्कृति के हरेक महत्वपूर्ण बदलाव के पीछे तकनीक ही रही| इसी तकनीक को आधुनिक युग में टेक्नोलोजी के नाम से जाना गया| मानव सभ्यता-संस्कृति को पोषित करने वाला हर आविष्कार या खोज समूची दुनिया में कुछ न कुछ तब्दीली लाने में कामयाब रहा है| तकनीक के महत्त्व को जानने समझने के लिए जरुरत इस बात की है कि उसके प्रभावों को बेहतर तरीके से समझा जाए|
सूचना क्रांति के मौजूदा दौर में पत्रकारिता सूचनाओं की वाहक है| जब से मानव ने संचार करना आरम्भ किया तभी से तकनीक उसकी संस्कृति में शामिल हो गई| इसी तकनीक के जरिए लेखन पद्धति की शुरूवात हुई| लेखन की अलग-अलग पद्धतियों के माध्यम से ज्ञान को भावी पीढ़ियों के लिए सुरक्षित रखना संभव हो सका|
कागज के आविष्कार ने जहां लेखन-पद्धति का विस्तार किया वही प्रेस और समाचार पत्रों की स्थापना ने इसे एक नयी दिशा प्रदान की| इसी से अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को नए आयाम मिले तकनीक चाहे जो भी  रही हो उसके आधुनिकतम स्वरूप तक पहुँच एक खास तबके यानि  विशेष उच्च और कूलीन वर्ग की ही रही| तकनीक के इस केंद्रीकरण और संकुचित दायरे के लिए आर्थिक कारण भी जिम्मेदार रहे| मगर सत्ता पक्ष की भी हमेशा यही कोशिश रही है कि आधुनिकतम तकनीक तक आम आदमी की पहुँच न हो| तकनीक पर जिसका जितना अधिक वर्चस्व स्थापित होता था वह उतना ही अधिक शक्तिशाली सत्ताधीश सिद्ध होता था| इस तरीके से तकनीक शक्ति का स्रोत बनी और उस पर नियंत्रण करने का साधन भी रही|
तकनीक पर नियंत्रण कितना अहम था इस बात का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि 1456 में जब प्रेस का आविष्कार हुआ तो इसके जरिये व्यापक स्तर पर धर्म-प्रचार किया गया| ‘गुटेनबर्ग की बाइबिल’ सर्वप्रथम छापे जाने वाली पुस्तक बनी| प्रेस यानी टेक्नोलोजी ईसाई धर्म के प्रचार-प्रसार का माध्यम बनी| 1561 में समाचारपत्रों का उदय हुआ जबकि भारत में इसकी शुरूवात 1774 से हुई| तभी से ही समाचारों पर सरकारी नियंत्रण की शुरूवात भी हुई|
औधोगिक क्रान्ति के दौर में जिन राष्ट्रों ने अपने उपनिवेश बनाए उन्होंने उन पर बेहतर नियंत्रण स्थापित करने के लिए टेक्नोलोजी का सहारा लिया| 1853 में भारत में रेलवे की शुरूवात हुई तो इसके जरिए प्रेस का विस्तार किया गया| साथ ही 1857 के विद्रोह को दबाने में इस टेक्नोलोजी ने अहम भूमिका अदा की| विजित राष्ट्र अपने उपनिवेशों पर बेहतर ढंग से नियंत्रण स्थापित करने के लिए ही तकनीकी श्रेष्ठता कारगर थी| मगर आधुनिक तकनीक आने तक पुरानी तकनीक कभी भी जनसुलभ नहीं कराई गयी|
इसी बीच नए आविष्कारों और नई टेक्नोलोजी से पत्रकारिता में नए-नए परिवर्तन आने लगे| 1840 में टेलीग्राफ आने से समाचारों का आवागमन तीव्र हुआ| अमेरिका और यूरोप के बीच पहली केवल लाइन बिछाई गयी| तो वहीँ 1876 में टेलीफोन के आविष्कार से सन्देश और ख़बरों को भेजना सरल हो गया| ख़बरों की उपलब्धता ने रहस्यों के अलम्बरदार राजतंत्र को पुराना कर दिया|
पत्रकारिता में एक और अहम आयाम के तौर पर 1906 में रेडियो की शुरूवात हुई| भारत में इसकी शुरूवात 1920 के दशक से हुई| 1930 के दशक से टेलीविजन की भी शुरूवात हो गयी| शुरूवात में दोनों जनमाध्यमों पर सरकार का कठोर नियंत्रण रहा| लाइसेंस प्रणाली और सेंसरशिप लादी गई| इन दोनों माध्यमों ने आने वाले वर्षों में पत्रकारिता के स्वरूप को बदल कर रख दिया|और इन्ही की तर्ज पर अखबारों का स्वरूप भी बदला| जनमत को प्रभावित करने वाले साधनों पर वर्चस्व  जनतंत्र पर नियंत्रण बन गया|
रेडियो में एफ एम चैनलों की शुरूवातएक नए युग का आगाज माना  गया| वर्तमान में इसकी पहुँच 97% जनता तक है| नए प्रयोग के तहत 2003 में कम्यूनिटी रेडियो की शुरूवात हुई| वहीँ टेलीविजन की दुनिया में भी सैटेलाइट टेलीविजन और केवल टेलीविजन आने से नई क्रांति का सूत्रपात हुआ| जी समूह और आज तक ने अपने चैनल खोले| इसके बाद तो जैसे न्यूज चैनलों की बाढ़ सी आ गई| अब तो इस सम्बन्ध में चयन की समस्या उत्पन्न हो गई है|
पत्रकारिता के विकास में 2004 का अमेरीकी राष्ट्रपति चुनाव अहम स्थान रखता है| 2004 के अमेरीकी राष्ट्रपति चुनाव से ब्लॉग की शुरुवात हुई, जो वैकल्पिक मीडिया का माध्यम बना और जिसने मुख्यधारा मीडिया के वर्चस्व को तोड़ा| बहरहाल, अगर पत्रकारिता के संदर्भ में कम्प्यूटर के पदार्पण की बात की जाये तो इसने मीडिया के क्षेत्र में इतने व्यापक परिवर्तन ला दिए जिनको गिन पाना संभव नहीं है| न केवल पुराने ढर्रे पर चल रही मुद्रण प्रणाली चुस्त-दुरुस्त हुई अपितु इलेक्ट्रोनिक और दृश्य माध्यमों में भी भारी बदलाव आ गया| कम्प्यूटर की सहायता ने संपादन, डिजानिंग, ले-आउट, कम्पोजिग और रंग-विधानों को नए आयाम दिए| इसने टेलीविजन में भी संपादन, साउंड मिक्सिंग, फोटोग्राफी इत्यादि को आसान कर दिया|
मौजूदा युग कनवर्जंस का युग है| कम्प्यूटर, इन्टरनेट और मोबाइल पत्रकारिता में अहम भूमिका अदा कर रहे है| समाचारपत्र इन्टरनेट पर उपलब्ध है| कैमरा, माइक्रोफोन और बाकी मीडिया उपकरणों में भी अत्यधिक बदलाव आ गए है| इनको आपरेट करना पहले से बेहद आसान हो चुका है|
लेकिन सिक्के का दूसरा पहलू भी है जिसे जानना उतना ही जरूरी है| टेक्नोलोजी सहूलियतों के अलावा अपने साथ तमाम तरह के खतरे भी लाती है| नई टेक्नोलोजी के आने से नई तकनीकी शब्दावली का भी विकास होता है| जो आम आदमी की समझ से एकदम परे है| इससे माध्यमो के अंदर तक आम आदमी की पहुँच नहीं हो पाती|
 टेक्नोलोजी की मदद से संचार माध्यमों ने सूचना क्रांति के इस दौर में जनमत पर अपना वर्चस्व स्थापित कर लिया है| इन संचार माध्यमों ने हमारी कल्पना का अपनी गिरफ्त में ले लिया है| संचार माध्यम नई-नई इच्छाओं की उत्पति करते है| उपभोग के इतने अधिक विकल्प उपलब्ध करा दिए जाते है कि वे विकल्प, विकल्प न रहकर हमारी आवश्यकतायें बन जाते है वह भी आकर्षक स्कीमों और पैकेज के तौर पर|
इस तरह जनमत विकसित न होकर निर्मित किया जा रहा है| मौजूदा दौर में विकसित राष्ट्रों का ही टेक्नोलोजी पर अधिक वर्चस्व और नियंत्रण है जिसके जरिये विकसित राष्ट्र अल्पविकसित और विकासशील देशों के जनमत को प्रभावित कर रहे है| यहाँ तक कि हमारी सोच और हमारे विचारों पर भी वर्चस्व और नियंत्रण स्थापित किया जा रहा है|                     
  
  

Tuesday, December 7, 2010

फिल्म प्रोमोशन के फंडे

फिल्म प्रोमोशन के फंडे
हाल ही में आमिर खान साहब संसद भवन में नजर आए| साथ ही नजर आए उनके आस–पास कुछ सांसद| आमिर साहब कुपोषण पर सरकार को राय देने पहुँच गए वो भी तब जब संसद में कामकाज ठप्प पड़ा हुआ है|
कमाल की बात तो ये है कि आमिर खान के संसद पहुँचते ही सत्ता और विपक्ष के सांसद एकदम एकजुट हो गए| जबकि दोनों पक्षों में २ जी स्पेक्ट्रम घोटाले मामले पर खींचतान चल रही है | विपक्ष सरकार से २ जी स्पेक्ट्रम घोटाले पर जेपीसी कमेटी की मांग पर अड़ा हुआ है और किसी भी मुद्दे पर बहस के लिए तैयार नहीं है|
ऐसे में आमिर खान का संसद में जाकर बयानबाजी करना महज अपनी आने वाली फिल्म  “धोबीघाट” को प्रमोट करने का पैंतरा भर है| आमिर खान के लिए ये कोई नई बात नहीं है| उनको फिल्मों को प्रचारित-प्रसारित करने के तमाम गुर और हथकंडों की समझ है और उन्हें मीडिया को मैनेज करना भली-भांति आता है| यह उनके मैनेजमेंट कौशल का ही एक फंडा है|
आमिर खान पहले भी सामाजिक मुद्दों से जुड़े रहे हैं| उनकी बहुचर्चित फिल्म “रंग दे बसन्ती” के रिलीज के वक्त वे “नर्मदा बचाओ” आंदोलन से जुड़े हुए थे| मेघा पाटकर के साथ कंधे से कंधा मिलाकर आंदोलन और किसानो के साथ खड़े थे| लेकिन फिल्म की कामयाबी के बाद आमिर साहब आंदोलन से अलग हो लिए|
“पीपली लाइव” फिल्म के दौरान वो महंगाई की बात करते नजर आये| फिल्म का गीत “महंगाई डायन” बहुत लोकप्रिय भी हुआ| आमिर ने महंगाई और गरीबी को भुनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है|  यह पहली बार नहीं हुआ जब गरीबी को दिखाकर पैसे बनाये गए है| हालीवुड की “स्लमडाग मिलेनियर” इसका बेहतरीन उदहारण है| फिल्म में जिस तरीके से गरीबी को दर्शकों के सामने परोसा गया उतनी ही अच्छी तरह से फिल्म ने बिजनेस भी किया|  यहाँ तक कि फिल्म ने आस्कर पुरस्कारों की झड़ी लगा दी|
फिल्म के प्रमोशन के लिए इस तरह के पैंतरे अपनाने वाले आमिर अकेले नहीं है| शाहरूख खान ने आईपीएल के दौरान अपनी बड़े बजट की फिल्म ओम शान्ति ओम को खूब प्रमोट किया था| अक्षय कुमार ने “खट्टा-मीठा” के लिए सड़कों पर घूमकर सड़को के गड्डों के बारे में जनता को जागरूता बढ़ाने का तरीका अपनाया था| वो भी बाकायदा फिल्म वाले गेटअप में|
फिल्मी सितारों के अफेयर और उनसे जुडी गासिप का भी फिल्म के प्रमोशन के लिए प्रयोग किया जाता है अब रियलिटी शो और फिल्म के हाट सीन भी किसी फिल्म को चर्चित करने के लिए इस्तेमाल किये जाते है| जैसे कि धूम २ में एश्वर्या-ऋतिक का किसिंग सीन ने खूब धूम मचायी|
लेकिन आमिर खान साहब ने अपनी फिल्मों के प्रमोशन के लिए एक नायाब तरीका ही ढूढ़ निकाला है| उनके प्रमोट करने के तरीके को देख कर एक पंथ दो काज वाली कहावत ही याद आती है| फिल्म प्रमोशन के लिए आमिर खान साहब जहाँ एक तरफ सामजिक मसलों से जुडकर एक संवेदनशील नागरिक और सामाजिक कार्यकर्ता की छवि बना रहे है वहीँ दूसरी तरफ वे इस छवि को भुनाकर अपनी फिल्मों का प्रमोशन भी बखूबी कर लेते है|
फिल्म सफल और आमिर खान साहब गायब! समस्याए वहीँ रहती है, मुद्दे वहीँ रहते हैं पर फिल्म प्रमोशन के समय इन्हें आवाज देने वाले आमिर खान साहब पैसे कमाकर इस पूरे दृश्य से नई समस्याओं को खोज कर उन्हें भुनाने के लिए निकल पड़ते हैं|

Sunday, December 5, 2010

सर्दी की एक रात, नवंबर का महीना, हल्का कोहरा.........

                    
सर्दी की एक रात, नवंबर का महीना, हल्का कोहरा|
अखबार का काम खत्म करके मैं देर रात करीबन पौने बारह बजे घर लौट रहा था| जैसे-तैसे मुझे बस मिल गई थी| अपने नियत स्टॉप पर मैं जब उतरा तो साथ ही आँखों से लाचार व्यक्ति भी उतरा| मेरा ध्यान उसकी ओर गया उसने मुझसे पूछा कि नांगलोई का स्टॉप यही है क्या ? मैंने उत्तर दिया कि वह तो दो स्टॉप पहले ही छूट गया| देखने में एकदम दुबला पतला था वो आदमी, उम्र तकरीबन 40-45 की रही होगी| सर्दी की इस रात में उसके कपडे, उसकी गरीबी और लाचारी बयां कर रहे थे| आधी बांह की मैली-कुचैली कमीज| पतलून , पतलून कम पजामा लग रही थी| कमीज और पतलून दोनों पर सिलवटें पड़ी हुई थी और  मारे सर्दी के वो काँप रहा था| तब उसने मुझसे अपनी रद्दी डायरी में से एक नम्बर लगाने का आग्रह किया| नंबर किसी उसके परिचित का था| मेरे मोबाईल में बैलेंस बिल्कुल खत्म हो चुका था मैं धर्म संकट में था कि उसकी मदद करूँ तो कैसे करूँ ? बस आनी इस वक्त एकदम बंद हो चुकी थी उसके पास अपने परिचित का पता तक नहीं था एसटीडी के सभी बूथ कब के बंद  हो चुके थे| बातचीत  के दौरान उसने बताया कि उसके पास ना रहने को है ना खाने को| मैंने उससे पूछा कि बगैर पते के जाओगे कहाँ ? 
उत्तर मिला - कि फोन कर लूँगा !
मैंने कहा - कि अगर फोन खराब हो या स्विच ऑफ हो तब !
उसकी चुप्पी में उसका उत्तर  छुपा हुआ था !
मैंने पूछा - कि इतनी देर रात आये ही क्यूँ ?
मुझे बुलाया तो दिन में ही था मगर दिन में आ ना सका !
मैंने कहा अगर दिन में आये होते तो एसटीडी के भी खुले रहते और लोग भी मदद के लिए रहते!
इस  वक्त सुनसान रोड पर केवल हम दोनों ही थे ना कोई रिक्शा ही था ना ही ऑटो था| कि उसको उसके गंतव्य तक पहुचने का बंदोबस्त किया जा सके| मैंने उसे समझाया कि आगे से किसी जगह पर जाना हो तो पहले से ही जगह का पूरा पता और फोन नम्बर लेकर चले| 
हमारी रुक रुक कर होने वाली बातचीत खत्म भी नहीं हुई थी कि अचानक एक बस आ पहुंची मैंने उसे बस में बिठा कर कंडक्टर से उसे नांगलोई उतरने को कह दिया| केवल मैं इतनी ही मदद उसकी कर सका| बस जाते ही मैंने अपने घर की ओर रुख किया लेकिन कई दिनों तक उसका लाचारी भरा चेहरा मेरी आँखों के सामने आता रहा|

Saturday, November 6, 2010

ये व्यापार नगरी, मेरे भाई

ये व्यापार नगरी, मेरे भाई
ये व्यापारनगरी
कोई ख्वाब बेचता
कोई कीमती राज बेचता

रह-रहकर मन में सवाल उठ रहा
क्या कोई यहाँ गरीबी का
भूखमरी का इलाज बेचता
उसका जवाब बेचता

हाड बेचता, मांस बेचता
जिस्मफरोशी का सामन बेचता
जवानी में बुढ़ापे के औजार बेचता
तो कोई यहाँ
बचपन को बुढ़ापे के दाम बेचता
भरे बाजार बेचता

हथियार बेचता,
खून बहाने के तमाम
साजो-सामान बेचता
खुलेआम बेचता
सरेबाजार बेचता

शायद कोई नहीं बचा यहाँ
जो अहसास की सौगात बेचता
भावनाओं की बयार बेचता

हर कोई यहाँ अपना
ईमान बेचता,
स्वाभिमान बेचता
हर बार नहीं,
तो कभी-कबार बेचता

Friday, October 1, 2010

निवाले की हकीकत


                           निवाले की हकीकत
मैं रोज की तरह सुबह उठकर कॉलेज जा रहा था | सर्दी में सुबह जल्दी क्लास होने कि वजह से मुझे बस का इन्तजार करने लगा | इतने में एक अधेड उम्र का आदमी फटी चद्दर ओढ़े आ खड़ा हुआ | देखने में काफी हष्ट-पुष्ट मगर मलिन था | लग रहा था कि कई रोज से नहीं नहाया हो | उसकी ढाढी–मूंछे बढ़ी हुई थी और चेहरा डरावना लग रहा था | मेरे अलावा स्टॉप पर दो-तीन लोग और भी थे | जो उसी को घूर रहे थे | वो स्टॉप पर ही झुककर कुछ बटोरने लगा | वो बटोरी वस्तु को झाड-झाडकर बिना चबाये ही  निगलने लगा |
तकरीबन पांच-सात मिनट यही सिलसिला चलता रहा | स्टॉप पर मौजूद लोग उसी को ताक रहे थे | वो कहीं से भी पागल या सरफिरा नहीं लग रहा था | अपनी आग को शांत करके वो धीरे-धीरे कोहरे में गुम हो गया |
उसके जाने के बाद लोगों ने उस जगह जाकर देखा कि वो क्या बटोरकर खा रहा था | देखने पर मालूम हुआ कि वो पिछली रात के बासी बचे पकोडे और ब्रेड के टुकड़े उठा-उठाकर निगल रहा था | जोकि रेत में से सने थे | इसलिए उनको झाड-झाडकर निगल रहा था | इस जगह दिन में रोजाना चाय-नाश्ते और खाने की रेहड़ी लगती थी |
इतने में सामने से बस आ गयी | मौजूद लोग उसी बस में चढ़ लिए | बस में भी वो लोग उस अधेड उम्र के आदमी की ही चर्चा कर रहे थे |  गरीबी और बेरोजगारी का मारा अपने पेट की आग बुझाने की खातिर क्या-कुछ खाने को मजबूर हो गया| उसके यह मजबूरी ही उसके लिए निवाले की हकीकत बन बैठी थी |

Monday, September 13, 2010

पत्रकारिता का बदलता चेहरा .......

पत्रकारिता का बदलता चेहरा .......

मौजूदा  दौर में पत्रकारिता का जो चेहरा हमारे सामने है वो ना तो आदर्शात्मक है ना पेशेवर ही है| आज के दौर की पत्रकारिता बाजारवादी है| बाजार से प्रभावित होने के साथ साथ सत्ता और शासन के दबाव में काम कर रही है| ऐसे हालातों में मीडिया की प्रासंगिकता और उसके औचित्य पर भी सवाल खड़े होना लाजिमी है|

इन  तमाम सवालात को बेहतर ढंग से जानने और समझने और उनके जवाब तलाशने के लिए जरुरत इस बात की है की पत्रकारिता की पृष्ठभूमि का मूल्यांकन और विश्लेषण किया जाये| आजादी से पहले की पत्रकारिता एक मिशन थी जिसका ध्येय अंग्रेजों के खिलाफ भारतीयों की आवाज बुलंद करना था| ब्रिटिश शासन के दमनकारी कानूनों के बावजूद उस दौर के समाचार पत्रों ने अपने काम को बखूबी अंजाम दिया| सरकार के दमनकारी और शोषक चेहरे को जनता के सामने रखा और आवाम के हक की लड़ाई में पुरजोर तरीके से साथ दिया| नतीजतन देश को आजादी मिली|


इस  बीच राजनीतिक चेतना के अलावा पत्रकारिता सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक मोर्चों पर भी जाग्रति लाने का काम करती रही| आजादी के बाद इन मोर्चों पर जागृति का काम तेजी से हुआ मीडिया को दमन कारी कानूनों से मुक्ति मिल चुकी थी| देश के सामने आत्मनिर्भर बनने और अपना स्वतंत्र अस्तित्व बनाये रखने की चुनौती थी| इस दौर में पत्रकारिता का एक नया चेहरा विकासमूलक पत्रकारिता सामने आया| विकास के मुद्दों सड़क बिजली पानी स्वास्थ्य शिक्षा  को तरजीह दी गई इसके अलावा सामाजिक कुरीतियों को हटाने का प्रयास किया गया|


सत्तर और अस्सी के दशक में विकास के मुद्दों के अलावा भ्रष्टाचार महंगाई और बेरोजगारी के मुद्दे हावी रहे| इन्ही के चलते तमाम सरकारें भी बदली| आपातकाल के दौर में इदिरा गाँधी ने अखबारों और रेडियो/टेलीविजन पर सेंसर लगा दिया| इन जबरन लादे गाये आपातकाल के नियमों के विरोध में अख़बारों ने अपने सम्पादकीय पन्ने खाली छोड़ अपना विरोध दर्ज कराया| 


नब्बे के दशक की शुरुआत में वैश्वीकरण के दौर में भारतीय अर्थव्यवस्था को दुनिया के लिए पूर्ण रूप से खोल दिया गया| इसका सीधा असर मीडिया पर पड़ा और मीडिया बाजार वादी हो गई| सत्ता और राजनीती के दबाव के अलावा बाजार का दबाव मीडिया पर गहराता गया|


मीडिया पर बाहरी और आंतरिक दोनों दबाव काम करने लगे मीडिया टी आर पी की अंध दौड के चलते अच्छे कंटेंट के बजाय सिर्फ सनसनी और लुभावनी ख़बरों को वरीयता दी जाने लगी| हिंसा अश्लीलता और मसालेदार ख़बरों से चैनलों से आगे जाकर प्रिंट मीडिया ने भी इसी को अपना लिया| साथ ही इन पर टी आर पी और विज्ञापन के दबाव और राजनीतिक दलों के गठजोड़ ने इनको  धराशाई कर दिया| व्यापारिक हलकों में मीडिया को अपने हितों को साधने के लिए प्रयोग किया जाने लगा| मीडिया आज सिर्फ सभी नामी गिरामी लोगों की बपौती बन कर रह गई है| इससे भी बढ़ कर मीडिया में एक नई प्रवृति पेड न्यूज़ घर कर गई| जिससे सच को दबाया जाने लगा और झूठ को सच के चोले में सामने लाया जाने लगा| और खोजी पत्रकारिता का एक नया चेहरा लोगों की निजी जिंदगी में दखल और मनगढ़ंत समाचार के तौर पर सामने आया| जिनमे मिर्च मशाला लगा कर जनता जनार्दन तक पहुचाया जाने लगा| साथ ही काले कमाई को भी इसमें जगह दी जाने लगी| वैश्विक परिदृश्य के लिहाज से विकसित देश ने तीसरी दुनिया के देशों के संचार माध्यमों ने अपना वर्चस्व स्थापित करने लगे| ताकि वह सांस्कृतिक और आर्थिक बाजार के तौर पर अपना कब्ज़ा बनाये रख सके| जिससे वह हमारी संस्कृति को गुलाम बनाये जा रहे हैं| भय को आधार बना कर आप की आवश्यकताएं निर्धारित की जाने लगी| और अगर आप फिर भी उन चीजों को यदि आप ना ग्रहण करे तो वो इतने लुभावन मुखौटे में सामने आती हैं कि आप उनको लिए बगैर नहीं रह सकता हैं| बाजार में हर चीज आप के लिए "ब्रांड" के तौर पर उपयोगी बना दी गई| 


इस तरीके से मौजूदा दौर की पत्रकारिता तमाम तरह के दबावों से ग्रस्त हो गई है| बाजारवाद, सत्ता, सरकार, राजनीति और विकसित देशों के दबावों को झेल रही मीडिया में सरोकारों की पत्रकारिता संभव नहीं दिखाई नहीं देती है| आज के समय में स्वतंत्र होकर पत्रकारिता करना तलवार की धार पर चलने जैसा है| लेकिन इसके बावजूद कहीं न कहीं लोग इस चेहरे को बदलने के लिए कार्य कर रहे हैं|

Thursday, August 26, 2010

महंगाई के बहाने संसद ठप्प .............

महंगाई के बहाने संसद ठप्प


संसद के मौजूदा सत्र में विपक्ष को बैठे -बिठाये महंगाई का मुद्दा हाथ लग गया है
विपक्ष महंगाई के बहाने संसद को चलने नहीं दे रहा है
भले ही उसे इसमें अपनी बड़ी जीत नज़र आ रही हो मगर नुकसान तो देश की जनता का ही हो रहा है
आम आदमी के पैसे से चलने वाली संसद में अगर कुछ काम ही न हो तो असली नुकसान देश की जनता का ही है
महिला आरक्षण और न जाने कितने अहम विधेयक अधर में लटके पड़े है
अगर संसद में इसी तरह गतिरोध जारी रहा तो कोई भी विधेयक पारित होता नज़र नहीं आ रहा
महंगाई पर विपक्ष अपनी राजनीति खेल रहा है और सरकार इस मसले पर किसी भी तरह की वोटिंग से बचना चाहती है
विपक्ष महंगाई के बहाने अमितशाह के मुद्दे से भी बचना चाहता है
राजनीति के इस खेल में जनता के पैसे को ही बर्बाद किया जा रहा है जिसका हर्जाना भी आम आदमी को ही उठाना पड़ेगा

सभ्यता का पाठ ....

सभ्यता का पाठ


दिल्ली जहाँ दुनिया के चोटी के शहरों में शुमार हो गया है वहीँ दिल्ली के जनता ने मानो कभी न सुधारने की कसम खा रखी है
परिवहन के नियमों को ताक़ पर रखकर उन्हें दिनदहाड़े तोड़ना लोग अपना फ़र्ज़ समझते हैं
नियमों के हिसाब से गाड़ी चलाना अपनी शान के खिलाफ मानते है
चालक मनमाने तरीके से ओवरटेक और रेड लाइट तोड़ते है
लोग जहां- तहां कूड़ा-करकट फेंकना और मल-मूत्र से शहर को सडाना अपना धर्म मानते हैं
सार्वजनिक सम्पति को नुकसान पहुंचाने और उसको बदसूरत बनाने में हम अव्वल है
सरकारी और एतिहासिक इमारतों की सूरत बिगाड़ने में माहारत हासिल है
जहां-तहां अश्लील चित्रकारी करके और अश्लील उक्तियों से अपनी सभ्यता-संस्कृति का परिचय भी बखूबी देते है
समस्याएं अत्यंत गंभीर है जिनसे मुहँ नहीं मोड़ा जा सकता
हमेशा दुर्व्यवस्था के लिए सरकार को दोष देना भी जायज नहीं है
हमारी भी अपने शहर को साफ-सुथरा रखने और व्यवस्था बनाये रखने की जिम्मेदारी बनती है
हमें सभ्यता का यह पाठ तो सीखना ही होगा
वरना राष्ट्रमंडल खेलों के वक़्त हम विदेशी मेहमानों के सामने दिल्ली की क्या तस्वीर पेश करेगें ?

गर्त में भारतीय महिला हॉकी .....

गर्त में भारतीय महिला हॉकी


भारतीय हॉकी अपने सबसे निम्न स्तर में पहुँच गयी है
महिला हॉकी टीम की खिलाडियों ने मुख्य कोच और अन्य कोचिंग स्टाफ पर यौन शोषण का आरोप लगाया हैं
इन आरोपों के बाद पूरे खेल जगत में सनसनी फैल गयी
पुरुष हॉकी टीम का हाल पहले से ही बुरा था अब

महिला हॉकी के इस विवाद ने देश को पूरी दुनिया के सामने शर्मसार कर दिया है
छोटे शहरों और कस्बों की गरीब लड़कियाँ आँखों में देश के लिए खेलने का सपना लिए हॉकी खेलने की शुरुवात करती है
तब उन्हें इस बात का अंदाजा भी नहीं होता कि सच्चाई इतनी कडवी और भयावह भी हो सकती है
महिला हॉकी खिलाडियों को इतना पैसा भी नहीं मिलता कि वे ठीक से अपनी गुजर-बसर भी कर सके ऐसे में यौन उत्पीडन का यह मामला भयानक सच्चाई को उजागर करने वाला है
विवाद के चलते महिला हॉकी टीम के प्रमुख कोच ने अपनी सच्चाई साबित होने तक स्वयं को टीम से अलग कर लिया है
वहीँ के पी एस गिल गिल साहब ने इसे पुलिस का मामला बताते हुए पूरे प्रकरण की स्वतन्त्र जांच की मांग की है
जो भी हो इस पूरे विवाद ने देश कि इज्ज़त को पानी-पानी कर दिया है क्योंकि धुंआ वहीँ उठता है जहाँ आग लगी हो

नक्सलवाद पर सरकार की पहल ...........

नक्सलवाद पर सरकार की पहल


देश लम्बे समय से नक्सल समस्या से त्रस्त है
नक्सलपटटी के लिए नासूर बनी चुकी इस समस्या का हल काफी लम्बे समय से तलाशा जा रहा है
सरकार की तमाम कोशिशें नाकाम रही है
पिछले 6 महीनो से जारी ग्रीन हंट ऑपरेशन भी नाकाफी साबित हुआ है
केंद्र सरकार ने अब राज्य सरकारों के साथ मिलकर नक्सलियों के विरूद्ध संयुक्त मोर्चा बनाने का निर्णय लिया है
प्रधानमंत्री और सात राज्यों की बैठक में यह फैसला लिया गया सरकार ने नक्सलवाद को राजनीतीक समस्या मानने की बजाय आपराधिक और विकास के अधूरेपन की समस्या माना
नक्सलियों के विरूद्ध संयुक्त ऑपरेशन के लिए सरकार हेलीकॉप्टर और अन्य तमाम जरूरी साजोसामान उपलब्ध करने का फैसला लिया है
सरकार की यह पहल वाकई काबिलेतारीफ है क्योंकि इसमें आम नागरिकों को नक्सलियों से अलग करके कार्रवाई की जायेगी
साथ ही इन पिछड़े राज्यों में विकास कार्यो के लिए 950 करोड़ रूपये खर्च किये जायेगें और सड़क, बिजली, स्कूल व स्वास्थ्य इत्यादि बुनियादी सुविधाओं का विकास किया जायेगा
लेकिन देखने वाली बात यह होगी कि तमाम राजनीतीक दल अपने निजी हितों और स्वार्थों से ऊपर उठकर किस हद तक इस कार्रवाई को अमलीजामा पहना पाते है

बारिश का कहर ...

बारिश का कहर


थम गयी दिल्ली, अँधेरे में डूब गयी दिल्ली
मानसून की करीबन एक घण्टे की तूफानी बारिश ने पूरी दिल्ली में कोहराम मचा दिया
राजधानी के नामी गिरामी इलाको में जलभराव की वजह से जाम लग गया
दीवार गिरने और करंट लगने से 12 लोगों को अपनी जाने गवाने पड़ी
इस तूफानी बारिश से राजधानी के सैंकड़ो पेड़ उखड गए और बिजली की तारे टूट गयी
कई इलाको में आधी रात तक बिजली गुल रही
आम आदमी को पांच-पांच घण्टे तक जाम में फंसे रहना पड़ा
जाम लगने की वजह नालों की समय पर सफाई न होना और जलनिकासी का उचित बंदोबस्त न होना है
ये आज की कहानी नहीं है सालों से दिल्ली का यही हाल है
एक घण्टे की बारिश से जब ये हाल हुआ है तो जोरदार मानसून से क्या हाल होगा ? जो भी हो बिगड़ी व्यवस्था का सारा खामियाजा तो आम आदमी को ही भुगतना पड़ रहा है
दिल्ली सरकार जहाँ मानसून से निपटने का दावा कर रही है
वहीं मौजूदा स्थिति ने दिल्ली सरकार के तमाम दावों को खोखला साबित कर दिया है
पी डब्ल्यू डी और एम सी डी दोनों एक दूसरे जवाबदेह ठहरा को रहे है
राजधानी में कुछ ही दिनों में राष्ट्रमंडल खेलों का आयोजन होना है अगर हालात इसी तरह बदतर रहे तो वहां भी की मिट्टी पलीद होना तय है
आम आदमी के साथ का दावा करने वाली सरकार को जल्द ही कदम उठाने की जरुरत है

बारिश का कहर ............

बारिश का कहर


दुनिया के चोटी के शहरों में शुमार दिल्ली में सिर्फ आधे घण्टे की बारिश ने कोहराम मचा दिया
इस तूफानी बारिश में 11 लोगों ने अपनी जानें गवां दी और कई लोग घायल हो गए
बारिश की वजह से जगह - जगह पानी भर गया और जाम लग गया
आधी रात तक लोग जाम से जूझते रहे
दिल्ली के ज्यादातर इलाको में बिजली गुल होने से पूरी दिल्ली अँधेरे में डूब गयी
आधे घण्टे की बारिश ने जब इतना कहर बरपाया है तो जोरदार मानसून से क्या हाल होगा ? दिल्ली सरकार जहाँ मानसून की पूरी तैयारी का दावा करती है वहां मौजूदा स्थिति केवल अव्यवस्था और बदइंतजामी को ही बयां कर रही है
जो भी हो मगर सरकार की अनदेखी का सारा खामियाजा तो आम आदमी को ही भुगतना पड़ रहा है
अगर समय रहते को हालात दुरुस्त करने के लिए कदम नहीं उठाये गए तो कामनवेल्थ खेलों में भी मिट्टी पलीद होना तय है

दिल्लीवालो की सुरक्षा भगवान भरोसे .....

दिल्लीवालो की सुरक्षा भगवान भरोसे


राजधानी दिल्ली लम्बे समय से आपराधिक वारदातों में अव्वल रही है
लेकिन पिछले कुछ दिनों में इन वारदातों में जबरदस्त तेजी आयी है
राजधानी की सुरक्षा व्यवस्था को ताक़ पर रखकर अपराधी अपने मंसूबो को अंजाम दे रहे हैं
अपराधी खुलेआम हत्या, लूटपाट और छेड़खानी की वारदातो को अंजाम देकर बेखौफ घूम रहे हैं
राजधानी बच्चों, बूढों और महिलाओं किसी के लिए भी सुरक्षित नहीं रह गयी है
दिल्ली सरकार को इसका जरा सा भी मलाल नज़र नहीं आता
कुछ ही दिनों में दिल्ली में राष्ट्रमंडल खेलों का आयोजन होना है ऐसे में दिल्ली की आपराधिक छवि दुनिया के सामने पेश हो रही हैं
बिगड़ी सुरक्षा व्यवस्था को दुरुस्त करने के लिए जल्द ही कदम नहीं उठाये गए तो देश की साख बनने से पहले ही मिट्टी में मिल सकती है
आखिर दिल्ली देश की राजधानी है

कश्मीर में सेना की तैनाती ...........

कश्मीर में सेना की तैनाती


20 साल बाद एक बार फिर से कश्मीर में सेना तैनात कर दी गयी हैं
घाटी में चैन और अमन की बाहाली के बाद हालात इतने बदतर हो जायेगे इसका किसी को अंदाजा भी न था
आम आदमी का गुस्सा सरकार के खिलाफ है
जम्मू-कश्मीर की उमर अब्दुल्ला सरकार अपने वायदों को पूरा करने में पूरी तरह नाकाम रही है
नतीजतन घाटी के युवा खासे नाराज है और पूरा कश्मीर उबल रहा है
कर्फ्यू के बावजूद भीड़ जगह-जगह इक्कठा होकर पुलिस पर पथराव कर रही है
पथराव करने वाली भीड़ में ज्यादातर बच्चे और युवा है जिनकी उम्र 9 से 25 के बीच है
प्रशासन युवाओ को रोजगार दिलाने में नाकाम रहा है
हताश बच्चो और युवाओ ने पत्थरबाजी को ही अपना पेशा बना लिया है
इतने संगीन हालातो से विश्वपटल पर भारत कि छवि धूमिल हो सकती है और दुनिया के सामने भारत का कश्मीर पर दावा हल्का पड़ सकता है

पानी रे पानी तेरा रंग कैसा ?

पानी रे पानी तेरा रंग कैसा ?


पानी की वजह से आजकल पूरे देश में हाहाकार मचा हुआ है
कहीं मानसून की वजह से बाढ़ के हालात पैदा हो गए है तो कहीं पानी न मिलने से लोग बेहाल हैं
हर जगह प्रशासन और सरकार की ही खामिया सामने आ रही है
हरियाणा के कुरुक्षेत्र में प्रशासन की अनदेखी की वजह से नहर में आयी दरार से पूरा इलाका जल में सराबोर हो गया
किसानो की खड़ी फसल बर्बाद हो गयी और दिल्ली-चंडीगढ़ हाईवे ठप्प हो गया
अगर सरकार ने समय रहते एतियती कदम उठाते होते तो ऐसी नौबत न आती
वहीँ दिल्ली के बहुत से इलाके पानी की कमी से जूझ रहे है
तंग आकर लोग ने सड़क पर विरोध-प्रदर्शन करना शुरू कर दिया
गुस्साई भीड़ ने तोड़-फोड़ और लूटपाट का रास्ता अख्तियार कर लिया
प्रशासन यहाँ भी नाकाम रहा
प्रशासन की अनदेखी और नाकारेपन का सारा खामियाजा आम आदमी को भुगतना पड़ रहा है
सरकार को नींद से जागने और अपनी जवाबदेही समझने की जरुरत है

बंद की राजनीती .........

बंद की राजनीती


भारत बंद से तेल, गैस और रोजमर्रा के खाद्दय पदार्थो की कितनी कम होंगी यह तो मालूम नहीं
हाँ, इतना जरूर पता है कि इससे आम आदमी को कि तकलीफों और दिक्कतों से दो चार होना पड़ा
महंगाई के मुद्दे पर विपक्ष के बंद से सरकारी संपत्ति का जो नुकसान हुआ सो अलग
देश भर में जगह-जगह पर जाम, तोड़फोड़ और आगजनी की घटनाएँ हुई
जिससे विद्यार्थियों से लेकर नौकरी-पेशे वालों को तमाम तरह कि परेशानियाँ झेलनी पड़ी
रेलों के रोके जाने से लेकर विमान सेवाएं बाधित रही
तोड़फोड़, आगजनी , रेल और विमान सेवाएं बाधित होने से सरकार को करोड़ों का नुकसान उठाना पड़ा है
बंद के बहाने विपक्ष अपनी राजनीती कर रहा है
महंगाई और बेतहाशा बढ़ी कीमतों का विरोध करना बेहद जरूरी है लेकिन विरोध शांतिपूर्ण तरीके से होना चाहिए
ताकि आम जनता को दिक्कतों , तकलीफों और परेशानियों का सामना न करना पड़े

क्रिकेट में नस्लवाद .........

क्रिकेट में नस्लवाद


नस्लवाद के जहर से एक बार फिर क्रिकेट में बूचाल आ गया है
शरद पवार के आईसीसी अध्यक्ष चुने जाने पर ३० साल पुराना नस्ल का विवाद गरमा गया है
ऑस्ट्रेलिया के पूर्व प्रधानमंत्री कि आईसीसी उपाध्यक्ष पद कि दावेदारी उनके आस्टेलियाई बोर्ड में कोई अनुभव की वजह से रद्द कर दी गयी
इससे बोखलाकर ऑस्ट्रेलिया, इंग्लैंड और न्यूजीलैंड ने बीसीसीआई पर निशाना साधना शुरू कर दिया हैं
इन देशों ने बीसीसीआई पर पद और पैसे के दुरुपयोग का आरोप लगाया हैं
वो शायद भूल गए हैं कि नस्लवाद का बीज उन्हीं ने बोया था जिसका फल अब उन्हें ही खाना हैं
ऑस्ट्रेलिया के पूर्व प्रधानमंत्री को नस्लवादी माना जाता रहा है
बीसीसीआई ने तो बस नस्लवाद से त्रस्त देशों का साथ दिया है

मोनिंदर सिंह पंधेर को क्लीन चिट कितनी जायज ...

मोनिंदर सिंह पंधेर को क्लीन चिट कितनी जायज




नोएडा हत्याकांड के आरोपी सुरेन्द्र कोली को सीबीआई की विशेष अदालत ने आरती हत्याकांड में दोषी करार दे दिया. वहीं इसी हत्याकांड के एक और अभियुक्त मोनिंदर सिंह पंधेर पर कोई चार्ज नहीं लगाया गया. मोनिंदर सिंह पंधेर को क्लीन चिट देश की जाँच एजेन्सियों और न्यायप्रणाली पर सवालिया निशान लगाती हैं. हत्याकांड में जहाँ सुरेन्द्र कोली को विभिन्न आरोपों के तहत सजा मिलनी तय हो गयी है. वहीं मोनिंदर पंधेर जिसकी शहके बिना इतना बड़ा हत्याकांड संभव नहीं लगता, उसे क्लीन चिट मिलना गले नहीं उतरता. मोनिंदर पंधेर ने पद और पैसे के दम अपने को बचा लिया है वहीं इस फैसले से कहीं न कहीं सीबीआई की जाँच प्रक्रिया की कमियां भी उजागर होती हैं.

Wednesday, August 25, 2010

तबियत से ...

तबियत से आज मैंने भी आगाज कर  ही दिया इस ब्लॉग की घमासान चौकड़ी में ............