Friday, February 8, 2013


नारी अस्मिता पर हमला  

नारी अस्मिता पर हमला करता संगीत और बॉलीवूड




अचानक से हमारे तथाकथित बुद्धिजीवी तबके ने हनी सिंह के अश्लील और फूहड़ संगीत को प्राइम टाइम की बहस का एजेंडा बना लिया। खबरफरोशों ने भी इसे हाथोंहाथ लिया। बैठे-बिठाये उनको एक नया एजेंडा जो मिल गया। हनी सिंह के संगीत की बहस में जो मुद्दा पीछे छूट गया वह था वास्तविक मुद्दा भड़काऊ भाषण की पहचान करने और उसपर कानूनी नकेल कसने का।



दअसल हमारा समाज नारी को पूर्ण नागरिक के तौर पर देखता ही नहीं। संगीत पर हुए इस हमले में अनुराग कश्यप प्रतीक कांजीलाल हनी सिंह के बचाव में सामने आये। हालांकि दोनों ने माना कि हनी सिंह का संगीत महिलाओं पर सीधे हमला  हैकांजीवाल ने हनी सिंह के चुनिंदा गानों को महिलाओं के प्रति थोड़ा सा उत्तेजक कहा। मजे की बात यह है अनुराग और कांजीवाल के गानों को उनका मानते हैं, लेकिन खुद हनी सिंह ने इसे सिरे से खारिज कर दिया।

विरोध केवल उनके चुनिंदा गानों को लेकर नहीं होना चाहिए, बल्कि उनके ज्यादातर गानों ने महिलाओं की छवि बिगाड़ने का काम किया है। उनके गानों में महिलाओं को वेश्या के तौर पर चित्रित किया गया। हनी सिंह के ’’यार भतेरे’’ गाने की वीडियों में हनी सिंह और गीतकार अल्फाज महिलाओं के खिलाफ उग्र भाषण का नमूना हैं। अगर इस दृश्य में महिलाओं को किसी धार्मिक समुदाय के सदस्यों साथ बदल दिया जाए, तो इस संगीत को बगैर किसी सवाल के समुदाय के खिलाफ उत्तेजित और भड़काऊ संगीत मान लिया जाता।

इस तरह का संगीत ही महिलाओं के खिलाफ हिंसा को बढ़ावा देने का काम करता है। तेजाबी हमलों की पीड़ितों महिआओं के ज्यादातर केस में उन्होंने बताया है कि पुरुष तिरस्कार और घृणा की भावना के ग्रस्त होकर महिलाओं के खिलाफ हिंसा, तेजाबी हमला और दिल्ली गैंगरैप जैसे दुष्कमों को अंजाम देते हैं।

अकेले हनी सिंह को कटघरे में खड़ा करना ठीक नहीं बॉलीवूड की बनने वाली डेली-बेली और गेंगस और वासेपूर जैसी फिल्में महिलाओं के खिलाफ हिंसा फैलाने के लिए कम जिम्मेदार नहीं है। सेंसर बोर्ड को चाहिए कि इस तरह के संगीत और फिल्मों को महज अश्लीलता  और फूहड़ता के पैमाने पर तोलने की बजाय घृणा, नफरत और उत्तेजना पैदा करने वाले भड़काऊ भाषण के पैमाने पर भी तोले।

भारतीय दंड संहिता की धारा
vzx -° सीधे तौर पर घृणा, नफरत और उत्तेजना पैदा करने वाले भड़काऊ भाषण को अपराध मानती है। यह धर्म, भाषा, क्षेत्रीय समूहों, जातियों और समुदायों के खिलाफ क्यों हो? नारी समुदाय के खिलाफ भी यह उतना ही गंभीर अपराध है।

धारा vzx- -बी सीधे किसी भी नागरिक या खास वर्ग के की गई टीका-टिप्पणी को संबोधित करती है। दुर्भाग्य की बात यह है कि यहां पर लिंग स्पष्ट रूप से अनुपस्थित है।

भड़काऊ भाषण का कानून नागरिकता को प्रभावित करने वाले इन सभी वर्गों में से लिंग की पहचान नहीं करता। इसका आशय यह है कि महिलाएं पूर्ण नागरिक नहीं हैं? उनके दिमाक में  भय पैदा करने वालों का सजा नहीं दी जाती? क्या यही अपने देश में बिना किसी भय के जीने का अधिकार है? इस अधिकार की अनुपस्थिति में कश्यप और कांजीलाल की व्याख्या, हनी सिंह के संगीत को सुनने से इंकार या जो इस संगीत को सुनते हैं उनकी आलोचना करना, आए दिन महिलाओं को जिस हिंसा का सामना करती है उसका मजाक उड़ाना है।

हनी सिंह की इस वीडियों को देख रही महिलाओं के लिए संदेश एकदम साफ है। जिस भी आदमी को हम खारिज करेंगी, वे हमारे घरों के बाहर हमें शर्मसार करेंगे, संगीत के साथ नहीं बल्कि तेजाब के साथ।









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